Thursday, March 28, 2013

यह कैसी होली

अबकी बार की होली न जाने कब आई और न जाने कब गुजर गई। मैं था तो अपने ही शहर में फिर भी न जाने क्‍यों ऐसा लगता रहा कि किसी अजनबी माहौल में हूं। शाम के वक्‍त शहर की कई ऐसी जगहों पर गया जहां मैं पहले न  जाने कितनी ही बार गया था लेकिन इस  होली पर वही पुरानी जगहें न जाने क्‍यों नएपन का अहसास करा रही थीं। नयापन भी ऐसा जिससे किसी भी तरह का न तो रोमांच महसूस हो रहा था न तो खुद को उस माहौल से जोड पा रहा था। मेरा शहर बनारस अब बदल रहा है। कहते हैं कि यह दुनिया का सबसे पुराना जीवंत शहर है। बाबा भोले की नगरी। इस शहर से ऐसा जुडाव रहा कि अपने कैरियर को किसी बडे शहर में परवान चढाने की बजाय यहीं रहने के लिए सबकुछ छोड आया था। लेकिन अब यहां पहले जैसा कुछ भी नहीं रहा, दिन हो या रात यहां की तमाम जगहों से बेहद अपनापन महसूस करने की आदत अब खत्‍म हो रही है। 

No comments:

Post a Comment