Sunday, November 29, 2015

एक थे राजा हर्षवर्धन सर्वस्व दान देने वाले


प्राचीन भारत में हर्षवर्धन (590-647 ई.) वह अंतिम हिंदू सम्राट थे जिन्होंने पंजाब को छोड़कर शेष समस्त उत्तरी भारत पर राज्य किया था। उन्होंने अपना एक सुदृढ़ साम्राज्य स्थापित किया था। राजा हर्षवर्धन के एक तथ्य से बहुत कम ही लोग परिचित हैं। वर्तमान में वारेन बफेट को दुनिया की ऐसी हस्ती के रूप में जाना जाता है जिसने अब तक दो बार अपनी पूरी संपत्ति को दान कर फिर से खुद को मिल्कियत का बादशाह साबित किया है। एक ऐसा इंसान जो कि संपत्ति के मामले में शीर्षस्थ होने के बावजूद सबकुछ दान देकर जीरो से शुरुआत कर फिर से वही मुकाम हासिल करने की क्षमता रखता हो। चूंकि पूर्व की ऐसी किसी घटना के बारे में जाना-सुना नहीं था इसलिए यह हतप्रभ करने वाली बात थी कि आखिर कैसे कोई इतना जोखिम भरा कदम उठा सकता है कि अपना सर्वस्व दान देकर फिर से उससे भी अधिक दौलत कमा ले। अभी कुछ वर्षों से इस चमत्कृत वाकये को लेकर उधेड़बुन चल ही रही थी कि देश में एनेस्थिया के क्षेत्र के बड़े नाम डा. एकराम लाल से मुलाकात हुई। वह सेवानिवृत्ति के बाद इन दिनों आराम करते हुए भी आराम नहीं कर रहे हैं। सेमिनार आदि में शिरकत करते हैं। किताबें लिखने में व्यस्त हैं। एक किताब लिखने के दौरान ही अपने अनुसंधान में उन्होंने राजा हर्षवर्धन का भी जिक्र किया। इसका जिक्र किताब में नहीं है बल्कि उन्होंने बातचीत के दौरान बताया। बताते हैं कि राजा हर्षवर्धन ऐसे सम्राट थे जो प्रति वर्ष वह काम किया करते थे जो साहस अभी तक वारेन बफेट ने दो बार कर दिखाया है। दरअसल राजा हर्षवर्धन प्रत्येक वर्ष अपने राजकोष का पूरा खजाना लेकर चलते थे और प्रयाग तक आते-आते दान कर देते थे। उस कोष का अधिकांश हिस्सा प्रयाग में ही दान किया जाता था। समूचा राजकोष दान दिया जाता था वह भी प्रति वर्ष। प्रयाग से लौटने के बाद राजा हर्षवर्धन फिर से अपने राज्य क्षेत्र से मिलने वाले राजस्व से राजकोष को भरते-बढ़ाते और राज चलाते थे।
अब इस तथ्य की वास्तविकता को चुनौती दी जा सकती है। चूंकि इतिहासकारों ने प्रमुखता से इस बात का उल्लेख कहीं नहीं किया है लिहाजा 'किंतु-परंतुÓ किया जा सकता है। यहां यह भी जिक्र कर दें कि डा. लाल ने जो तथ्य बताया उसका प्रसंग उन्होंने उन वशंजों से पुख्ता किया है जिनके पूर्वज राजा हर्षवर्धन के साथ रहा करते थे। ऐसे ही वंशजों में से एक थे खुद डा. लाल के पूर्वज भी जो बाद में प्रयाग के समीप खुद राजा हर्षवर्धन द्वारा बसाए गए थे।

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