Saturday, April 9, 2011

तहरीर चौक बनते बनते रह गया जंतर मंतर

अन्‍ना की आंधी में सबकुछ उडता दिखा। एक ओर केंद्र की सरकार उधियाई जा रही थी तो जनता की भावनाएं भी बेकाबू होकर अन्‍ना हजारे के समर्थन में काफिले दर काफिले जुडती दिखीं। भ्रष्‍टाचार के खिलाफ उनकी जंग और अनशन के तीसरे दिन जिस कदर जंतर मंतर पर लोगों की भीड उमडी ऐसा लगा कि बस मिस्र की तरह तख्‍ता पलटने के लिए लोग अनशन स्‍थल को ही तहरीर चौक में बदल देंगे। यह दीगर बात है कि लोगों के उमडने का यह सिलसिला सिर्फ दिल्‍ली में ही नहीं बल्कि सभी राज्‍यों और सभी बडे शहरों में अपने शबाब पर था। बहरहाल एक बुजुर्गवार ने जिस तरह से देश के बच्‍चों से लेकर युवाओं और हमउम्रों में नई उर्जा का संचार किया था वह काफी हद तक स्‍वत: स्‍फूर्त प्रतिक्रिया थी। हर तरह से परेशान गरीब और मध्‍यमवर्ग इस आंदोलन का हिस्‍सा बनने से खुद को रोक न सका। अन्‍ना ने एक शुरुआत कर जैसे करोडों लोगों के दिल की बात को जुबान दे दी थी। नतीजा वही निकला जो निकलना था। लोग बेतहासा तरीके से आंदोलन के हमसफर बनने को बेताब दिखे। प्रत्‍यक्ष और अप्रत्‍यक्ष रूप से लाखों लोगों ने अनशन कर भ्रष्‍टाचार को उखाड फेंकने का संकल्‍प लिया। इन सबके बाद भी जब केंद्र सरकार ने अन्‍ना की सभी मांगों को मान लिया, और अनशन समाप्‍त करने के लिए अन्‍ना ने बच्‍ची के हाथ पानी पिया तो न जाने क्‍यों आम लोगों में जो शुकून की भावना दिखनी चाहिए थी नहीं दिखी। भ्रष्‍टाचार की बेल को पनपते वर्षों से देख रहे लोगों को यहां एक त्‍वरित परिणती चाहिए थी जो नहीं देखने को मिली। कुछ के जेहन को टटोलने की कोशिश की तो बात छनकर बाहर आई। कम से कम भ्रष्‍टाचार में लिप्‍त दो-चार केंद्रीय मंत्रियों का इस्‍तीफा ही हो जाता तो दिल को कुछ हद तक तसल्‍ली मिल जाती। खैर मांगें मानी गईं हैं तो सरकार मसौदा भी तैयार करेगी, संभवत: मानसून सत्र में जन लोकपाल विधेयक संसद में प्रस्‍तुत भी किया जाए लेकिन बार-बार ठगे गए जन को अब अपने तंत्र पर विश्‍वास नहीं रह गया है। न जाने सरकार कौन सा तिकडम करे और पूरे देश को ठगी का शिकार होना पडे। क्‍योंकि फिर से भ्रष्‍टाचार के खिलाफ ऐसा माहौल बन पाए या न बन पाए। वजह यह कि इस देश में जनता को भरमाने के तमाम इंतजाम मौजूद हैं और प्रायोजित भी किए जाते हैं। खैर एक बात और जिक्र करने वाली है मेरे एक मित्र ने आज ही मुझे मेल के जरिए एक खूबसूरत और आलीशान बंग्‍ले की बाहरी और अंदरूनी तस्‍वीरें भेजी हैं। एक तरह से उसे भी कहीं से मिला था लिहाजा फारवर्ड करके मुझ तक इस अपील के साथ पहुंचाया गया कि इसे बढाते रहिए। जानते हैं दावा किया गया है कि उक्‍त तस्‍वीरें स्‍पेक्‍ट्रम महाराज राजा के अदभुत बंगले के बताए गए। देखकर आंखें चौंधिया गईं। जैसे लगा यूरोप के किसी अति धनाडय के घर को निहार रहा हूं। चाहूं तो उक्‍त्‍ा तस्‍वीरें यहां अटैच कर आपको भी दिखा दूं लेकिन ऐसा करुंगा तो तय मानिए मेरी तरह फ्रस्‍टेट हो जाएंगे, फिर एक बात और भी है जिसने मुझे ऐसा करने से रोका क्‍या पता वह बंगला किसी और का हो क्‍यों कि उसमें कहीं भी राजा नजर नहीं आए।