Monday, June 22, 2009

trahimaam

क्षमाप्रार्थी हूँ मित्रों, काफी समय से अपने लिए ही वक्त नही निकल पा रहा था। अब चेता हूँ तो शायद ढर्रे पे लौट सकूँ। अख़बार की नौकरी के दौरान तो कालम दो कालम लिखना और उसे बेहतर बनने के लीये अनदाज़ और कलेवर तलाश लेना तो जैसे फितरत बन चुकी है लेकिन अपने ही ब्लॉग पे अपने ही मन की थोडी सी बातों को लिख पाना जैसे अपार लगता है। मुझ जैसे मेरे कुछ साथी भी हैं। सबसे निवेदन है की कुछ तो अपनी रचनाधर्मिता दिखाओ भाई। अगर मई भटकू तो मुझे भी टोको।

Tuesday, March 10, 2009

यहाँ तो प्रह्लाद भी जला दिए जाते हैं

एक अजीब दौर से गुजर रहे है होली मानाने वाले। आज की रात पुरे देश में होलिका दहन की गई। एक नए चलन के मुताबिक होने ये लगा है की होलिका के बिच होलिका और उसकी गोद में भक्त प्रह्लाद की प्रतिमा भी राखी जाने लगी है। ऐसे में जब लोग होलिका जला रहे है तो प्रहलाद की प्रतिमा भी साथ जला दी जा रही है। जबकि मान्यता यही है की होलिका जल जाती है मगर प्रहलाद बचे रह जाते हैं। अब ऐसे में जो लोग होलिका दहन के पहले होलिका की गोद से प्रहलाद की प्रतिमा को हटा लेते है उनको तो कोटि कोटि प्रणाम लेकिन जो लोग ऐसा नही करते है उनको भगवान सद्बुधी दे।

Saturday, February 14, 2009

वैलेंटाइन डे

बडा ही अजीब चौकाने वाला अनुभव दे कर गया अबकी का वैलेंटाइन डे का महापर्व। यही आलम रहा तो इसके विरोध के बूते सालभर की खुराकी चलने वाले विरोधियों को अपने लिए कोई नया धंधा देखना पड़ेगा। इसमे तो किसी को संदेह नही रह गया है की प्रेम करने वालों ने वैलेंटाइन डे मनाया तो जरुर है। फ़िर ऐसा क्या हुआ की विरोधियों के हाथ कुछ लगा नही। तमाम शहरों में विरोध करने वालों की टोली निकली तो लेकिन ऐसा कुछ नही कर पाई की टीवी चैनल वाले उनके दीवाने हो उठे। कुछ एक शहरो में जो भी थोड़ा बहुत स्टंट देखने को मिला वो वही के लोकल माडिया और विरोधी संगठनों की मिलीजुली साजिश रही की ख़बर खड़ी हो जाए। लिहाजा थोड़ा बहुत कुछ देखने को मिला भी.

Thursday, February 12, 2009

saloni

न जाने अभी क्या क्या दिन देखने को मिलने वाले है। जिस कदर चैनल संस्कृति नै पीढी को गुमराह करने पर तुली है उससे ये कहना मुस्किल हो गया है की संस्कार नाम की विरासत बची रह पाएगी या नही। बात बहुत पुराणी नही हुई है इसलिए सबको याद भी होगा। आजकल एक रियलिटी शो में बच्चो के सहारे बड़ी उम्र के लोग अपनी फूहड़ता को परोसने में जुटे है। बच्चो में अगर कही तलेंट है तो उसका भी बंटाधार हो रहा है। नंबर और एस एम् एस के जारी जब से प्रत्भाओ के कद मापे जाने लगे तब से अर्थ का अनर्थ कुछ अधिक हो रहा है। एक कनेल पे आने वाले शो में पुणे की सलोनी नाम की बच्ची को कोई भला कैसे भूल सकता है जो अक्सर ही गंगू बाई के किस्से सुनती है। जी हाँ वही सलोनी जिसके मुह से सीधे कॉमेडी के नाम पे ऐसी फूहड़ता परोस्वाई जा रही है जिसने मुझ जैसे तमाम लोगो को ye सोचने पे मजबूर कर दिया है की इन बच्चो को भला क्यो बरबाद कर रहे है इनके घर वाले। अरे ऐसा तो कोई अपने सौतेले बच्चो के साथ नही करता। सबने गौर किया होगा की नन्ही सलोनी अपनी पुरी मासूमियत के साथ शो के स्टेज पे आती है। थोड़ा ठुमकती है और फ़िर सुरु हो जाती है उस स्क्रिप्ट का रत्ता लगाने जो उसके माँ बाप ने उसके लिए तैयार किया था। डेव के साथ इसलिए ये कह सकता हु क्योकि उस उम्र के बच्चो को नही पता होता की सलोनी क्या कहना चाहती है। कोमेडी में सलोनी बोलती है की मेरे पापा मुझसे बहुत प्यार करते है। हमेसा मझको पूछते रहते है। घर में होते है तो अक्सर पूछते है की सलोनी बेटा सो गई क्या, अधि रात में भी मम्मी से पूछते है की सलोनी बेटा सो गई क्या। सलोनी आगे सुनती है की पापा जब दिन में घर पे होते है तो अक्सर पैसे देकर बहार ये कहते हुए भेजते है की जा बेटा चकलेट खा के आ लेकिन एक घंटे से पहले मत आना। सलोनी ने अपनी पुरी मासूमियत से पुरी स्क्रिप्ट तो सुना दी लेकिन उसका सटीक मतलब उसको पता था न उसकी उम्र के और बच्चो को पता चला। अब चौकाने वाली बात ये है की फ़िर उस परफोर्मेंस पे जोरदार ठहाके और ढेरो खिलखिलाहट कहा से निकल रही थी। दिल पे हाथ रख के पूछिए हम सभी लोटपोट जा रहे थे। वह अपनी हिरिस को को एक बच्चे की तोतली आवाज़ से मिटने की एक बडिया तकनीक इजाद कर ली है हमने। अगर मई ग़लत नही हु तो इसी सो में ब्लड टेस्ट वाली भी एक कॉमेडी एक बच्चे ने सुने थी। वो बता है की एक बार वो हॉस्पिटल में अपने दोस्त से पूछता है की क्यो रो आरहे हो तो वह बताता है की ब्लड टेस्ट कराने आया था नर्स ने उंगली काट दी, फ़िर वो कहता है अच्छा है तुने बता दिया मई तो यूरिन टेस्ट कराने आया था। एक से बढ़ के एक परफोर्मेंस हो रहे है इन बच्चो के माँ बाप के अलावा की आले भी साथ होते है। एक से बढ़ के एक शो हो रहे है। लाफ्टर के एक शो में तो जजिंग करने वाले मर्दों के बिच बैठ के अपुरं सिंह तो द्विअर्थी चुटकुलों पे तो ऐसे ठहाके लगाती है की पूछिए मत।
बहार हाल जो भी चल रहा है जैसा भी चल राय थी नही है। मनोरंजन के पे फूहड़ता परोसे जाने का ये खेल बंद होना चाहिए। इसके लिए सर्जिम्मेदार विभागों को बिना किसी सिकायत के इंतजार किए ख़ुद आगे आकर कार्रवाई कानी चाहिए। इन सबके लिए अपसंस्कृति फैला रहे चनलो पे पाबन्दी तक भी लगे जनि चाहिए।
अब आपकी बारी... जय हिंद

Wednesday, February 11, 2009

amantran

हमारी इस मुहीम में आप सभी का साथ जरुरी है