Thursday, March 28, 2013

बाबा की नगरी की अडभंगी होली


बनारस का असली रस है यहाँ की होली .....जिसके अद्भुत रंग जब बरसते है तो हर शख्स रंगीन नज़र आता है ! कुछ बेहद रूहानी रंग जो अब बेपर्दा होके हर ओर असर दिखाने लगे है , ढेर सारी खुशियाँ ,ढेर सारी मस्ती और ढेर सारा उत्साह समेटे इन पलों से आप भी गुजरिये ....देखिये बनारस की सबसे रंगीन तस्वीर जो यहाँ रंग भरी एकादशी के नाम से मशहूर है !!
श्री काशी विश्वनाथ दरबार में रंग भरी एकादशी .... आज गौना होता है गौरा पार्वती का , अपूर्ण श्रृष्टि को पूर्ण करने के लिए शिवरात्री को पार्वती से विवाह रचाने वाले शिव आज शक्ति को उनके पीहर से विदा करा कर अपने घर ले जाते हैं ! क्या संत-महंत, क्या घोंघा बसंत , रोज कमाने खाने वाले गिरहस्तों के भी चेहरे यूँ खिल जाते है ,जैसे खुशियों भरी हसरतों ने डेरा डाल रखा हो ! श्री काशी विश्वनाथ महंत जी के सजे धजे घर में चहल पहल है ,यही से तो महादेव और पार्वती की डोली उठती है ! भोलेनाथ सुबह से माता पार्वती के साथ अपने खास कमरे कोहबर में है ! ससुराल वालों में अखंड सौभाग्य की प्रतिक इस जोड़ी को विदाई भेंट करने की होड़ ,तो आँगन में पुरुषों के बाद अपनी बारी का इंतजार करती महिलायें ! कोई शिव गुण की महिमा बता कर शिव को रिझा रहा है तो कोई अपना राजा , अपना गुरु तो कोई खुद को शिव का गण साबित करने में लगा है ! जैसे काशी का कंकड़ कंकड़ सचमुच में शंकर है !
उधर खुद शिव के अवधूत स्वरूप मने जाने वाले नागा सन्यासि समूह में भी उत्सव का माहौल है ! यहाँ शिव पार्वती विवाह से लेकर गौने की बारात में भी शामिल होने की ख़ुशी, शिव के फक्कड़ मिजाज़ की तस्वीर पेश कर रही है ! हर हर महादेव के उद्घोष पे थिरकते नागा साधुओं की टोली ने सबसे पहले
अबीर गुलाल उड़ा के जनमानस में होली मनाने का संकेत देतें है ! यहाँ खुशियों की उड़ान ऐसी, जिसे देख आपभी सवाल करें की, कौन कहता है की सन्यासियों के जीवन में रंग नहीं होते ! जानकार बताते हैं की ...शिव भूत्वा शिव यजेती ....यानि आज के दिन सभी शिव के रंग में रंगे है !
धीरे धीरे पार्वती जी के ससुराल, यानि महादेव के घर विदा होने का वक्त आ जाता है ! फूल-माला साथ में वस्त्र-आभूषण से सजे संवरे दिगंबर शिव शंभू और पार्वती के रजत विग्रहों से सजी डोली,पार्वती जी के पिता यानि राजा हिमाद्री के घर से बाहर लायी जाती है ! फिर शुरू हो जाती है बाबा विश्वनाथ से हंसी ठिठोली और उनपे अबीर गुलाल और फूल उड़ाने की होड़, कोई किसी पे रंग नहीं लगता लेकिन सभी रंग जाते है,आसमान रंगीन हो जाता है !विग्रहों की आरती के बाद डोली के आगे बारात में शामिल डमरुओं और शहनाई की मंगल ध्वनी रोंगटे खड़े कर देने रूहानी माहौल में बदल जाती है ......या यूँ कहें की डोली के आगे जब इक्कीस विशाल डमरुओं की थाप संग, शहनाई की मंगल धुन ने संगत साधी तो ऐसा लगा मानो काशी के कंकड़ कंकड़ में हरकत होने लगी ..
बरों शंकर ,नहीं रहों कुँवारी .............माँ पार्वती का जन्मों जन्मों पुराना ये संकल्प आज पूरा हो रहा है इस ख़ुशी में शामिल हर शख्स होली की इस औचारिक शुरुवात के बाद बुढ़वा मंगल तक ऐसे ही फक्कड़ मस्ती में डूबा रहेगा ,बीच में होलिका जलेगी और होली भी खेली जाएगी .....अगर आप भी इस रूहानी माहौल में शामिल हुए तो जरुर कहेंगे की "जो रस बरस रहा काशी में , वो रस तीनो लोक में नाहीं ...

यह कैसी होली

अबकी बार की होली न जाने कब आई और न जाने कब गुजर गई। मैं था तो अपने ही शहर में फिर भी न जाने क्‍यों ऐसा लगता रहा कि किसी अजनबी माहौल में हूं। शाम के वक्‍त शहर की कई ऐसी जगहों पर गया जहां मैं पहले न  जाने कितनी ही बार गया था लेकिन इस  होली पर वही पुरानी जगहें न जाने क्‍यों नएपन का अहसास करा रही थीं। नयापन भी ऐसा जिससे किसी भी तरह का न तो रोमांच महसूस हो रहा था न तो खुद को उस माहौल से जोड पा रहा था। मेरा शहर बनारस अब बदल रहा है। कहते हैं कि यह दुनिया का सबसे पुराना जीवंत शहर है। बाबा भोले की नगरी। इस शहर से ऐसा जुडाव रहा कि अपने कैरियर को किसी बडे शहर में परवान चढाने की बजाय यहीं रहने के लिए सबकुछ छोड आया था। लेकिन अब यहां पहले जैसा कुछ भी नहीं रहा, दिन हो या रात यहां की तमाम जगहों से बेहद अपनापन महसूस करने की आदत अब खत्‍म हो रही है।