Sunday, December 18, 2011

बिग बॉस का घमासान

रियलटी शो के नाम पर एक बार फिर से दर्शकों में झुझलाहट पैदा करने वाला एक कार्यक्रम इन दिनों सुर्खियों में है। बिग बॉस का सीजन फाइव....फिलहाल का सबसे उबाउ और पकाउ शो जिसे देखने से मनोरंजन कम टेंशन अधिक होने लगा है। इस लक्जिरियस घर के हालात इतने बिगड चुके हैं कि पूछिए मत। यहां होने वाले झगडों ने झोपडपटटी को भी पीछे छोड दिया है। बिगडते हालात और घटती टीआरपी को देखते हुए ही इस शो को कुछ हद तक संभालने और प्रतिभागियों को एक तरह से चेतावनी देने के लिए एकाध दिन पहले घर में बगैर किसी जरूरत के अभिनेता सलमान खान की कुछेक मिनटों के लिए इंट्री कराई गई। यह गैरजरूरी इंट्री फिलहाल के लिए बेहद जरूरी हो गई थी। वजह साफ थी कि दिनभर का थका इंसान रात में जब टीवी के चैनलों को बदलता है तो वह ठहरता वहीं है जहां कुछ सुकून मिलने वाले प्रोग्राम आ रहे होते हैं। इसके उलट मौजूदा समय में बिग बॉस का रियलटी शो दर्शकों के लिए इरिटेटिंग हो गया था जिससे जाहिराना तौर पर शो के प्रायोजकों को भी झटके लगने लगे थे।

Monday, July 25, 2011

जवाब नहीं....

मैंने देखा,
दर्द से तडपते बूढे बाप को,
उनके आंसुओं में अपने आपको।
क्‍यों झेलता है वो रिश्‍तों के शाप को,
इंसान खो देता है रिश्‍तों में अपने आपको।
मैंने देखा है,
उनकी पथराई आंखों के सपनो को,
उनके भूले बिसरे अपनों को,
तिनका तिनका बिखरे अरमानों को,
तिल तिल के मरते स्‍वाभिमानों को।
मैंने देखा है,
जो निभातें हैं हर रिश्‍ते चुपचाप,
अपने लिए न रखते कोई हिसाब,
फिर भी उनकी इज्‍जत बेलिबास।
मैंने देखा है,
बाप के पसीनों से रिस्‍तों के लहू बनते,
उनके अरमानों तले परिवार के सपने सजते,
उस बाप के सपने भी पानी से बहते हैं,
जिस सपने और खून से हम बनते हैं।
मैंने देखा है,
दर्द से तडपते बूढे बाप को।
(अज्ञात रचनाकार का मर्म)


ज़िन्दगी का दरख्त
हो गया है ज़र्जर
समय की दीमक ने
कर दी हैं जड़ें खोखली
तनाव के थपेड़ों ने
झुलस दी है छाल
ख्वाहिशों के पत्ते
अब सूखने लगे हैं
और झर जाते हैं
प्रतिदिन स्वयं ही .
परिस्थितियों की आँधियाँ
उड़ा ले जाती हैं दूर
और जो बच जाते हैं
कहीं इर्द - गिर्द
उन पर अपनों के ही
चलने से होती है
आवाज़ चरमराहट की
उस आवाज़ के साथ ही
टूट जाती हैं सारी उम्मीदें
और ख़त्म हो जाती हैं
सूखी हुई ख्वाहिशे .

Saturday, April 9, 2011

तहरीर चौक बनते बनते रह गया जंतर मंतर

अन्‍ना की आंधी में सबकुछ उडता दिखा। एक ओर केंद्र की सरकार उधियाई जा रही थी तो जनता की भावनाएं भी बेकाबू होकर अन्‍ना हजारे के समर्थन में काफिले दर काफिले जुडती दिखीं। भ्रष्‍टाचार के खिलाफ उनकी जंग और अनशन के तीसरे दिन जिस कदर जंतर मंतर पर लोगों की भीड उमडी ऐसा लगा कि बस मिस्र की तरह तख्‍ता पलटने के लिए लोग अनशन स्‍थल को ही तहरीर चौक में बदल देंगे। यह दीगर बात है कि लोगों के उमडने का यह सिलसिला सिर्फ दिल्‍ली में ही नहीं बल्कि सभी राज्‍यों और सभी बडे शहरों में अपने शबाब पर था। बहरहाल एक बुजुर्गवार ने जिस तरह से देश के बच्‍चों से लेकर युवाओं और हमउम्रों में नई उर्जा का संचार किया था वह काफी हद तक स्‍वत: स्‍फूर्त प्रतिक्रिया थी। हर तरह से परेशान गरीब और मध्‍यमवर्ग इस आंदोलन का हिस्‍सा बनने से खुद को रोक न सका। अन्‍ना ने एक शुरुआत कर जैसे करोडों लोगों के दिल की बात को जुबान दे दी थी। नतीजा वही निकला जो निकलना था। लोग बेतहासा तरीके से आंदोलन के हमसफर बनने को बेताब दिखे। प्रत्‍यक्ष और अप्रत्‍यक्ष रूप से लाखों लोगों ने अनशन कर भ्रष्‍टाचार को उखाड फेंकने का संकल्‍प लिया। इन सबके बाद भी जब केंद्र सरकार ने अन्‍ना की सभी मांगों को मान लिया, और अनशन समाप्‍त करने के लिए अन्‍ना ने बच्‍ची के हाथ पानी पिया तो न जाने क्‍यों आम लोगों में जो शुकून की भावना दिखनी चाहिए थी नहीं दिखी। भ्रष्‍टाचार की बेल को पनपते वर्षों से देख रहे लोगों को यहां एक त्‍वरित परिणती चाहिए थी जो नहीं देखने को मिली। कुछ के जेहन को टटोलने की कोशिश की तो बात छनकर बाहर आई। कम से कम भ्रष्‍टाचार में लिप्‍त दो-चार केंद्रीय मंत्रियों का इस्‍तीफा ही हो जाता तो दिल को कुछ हद तक तसल्‍ली मिल जाती। खैर मांगें मानी गईं हैं तो सरकार मसौदा भी तैयार करेगी, संभवत: मानसून सत्र में जन लोकपाल विधेयक संसद में प्रस्‍तुत भी किया जाए लेकिन बार-बार ठगे गए जन को अब अपने तंत्र पर विश्‍वास नहीं रह गया है। न जाने सरकार कौन सा तिकडम करे और पूरे देश को ठगी का शिकार होना पडे। क्‍योंकि फिर से भ्रष्‍टाचार के खिलाफ ऐसा माहौल बन पाए या न बन पाए। वजह यह कि इस देश में जनता को भरमाने के तमाम इंतजाम मौजूद हैं और प्रायोजित भी किए जाते हैं। खैर एक बात और जिक्र करने वाली है मेरे एक मित्र ने आज ही मुझे मेल के जरिए एक खूबसूरत और आलीशान बंग्‍ले की बाहरी और अंदरूनी तस्‍वीरें भेजी हैं। एक तरह से उसे भी कहीं से मिला था लिहाजा फारवर्ड करके मुझ तक इस अपील के साथ पहुंचाया गया कि इसे बढाते रहिए। जानते हैं दावा किया गया है कि उक्‍त तस्‍वीरें स्‍पेक्‍ट्रम महाराज राजा के अदभुत बंगले के बताए गए। देखकर आंखें चौंधिया गईं। जैसे लगा यूरोप के किसी अति धनाडय के घर को निहार रहा हूं। चाहूं तो उक्‍त्‍ा तस्‍वीरें यहां अटैच कर आपको भी दिखा दूं लेकिन ऐसा करुंगा तो तय मानिए मेरी तरह फ्रस्‍टेट हो जाएंगे, फिर एक बात और भी है जिसने मुझे ऐसा करने से रोका क्‍या पता वह बंगला किसी और का हो क्‍यों कि उसमें कहीं भी राजा नजर नहीं आए।

Sunday, February 20, 2011

चंद अहसास................

ये सर्द रात.....ये आवारगी....ये नींद का बोझ,
मैं अपने शहर में होता तो घर चला जाता........

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अपने चेहरे से जो जाहिर है छुपाएं कैसे,
तेरी मर्जी के मुताबिक नजर आएं कैसे
घर सजाने का तसव्‍वुर तो बहुत बाद का है,
पहले यह तय हो कि इस घर को बचाएं कैसे
कहकहा आंख का बर्ताव बदल देता है,
हंसने वाले तुझे आंसू नजर आए कैसे
कोई अपनी ही नजर से तो हमें देखेगा,
एक कतरे को समंदर नजर आएं कैसे.......

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दूर से दूर तलक एक भी दरख्‍त न था,
तुम्‍हारे घर का सफर इस कदर तो सख्‍त न था
इतने मसरूफ थे हम जाने की तैयारी में,
खडे थे तुम और तुम्‍हे देखने का वक्‍त न था
मैं जिस खोज में खुद खो गया था मेले में,
कहीं वो मरा ही अहसास तो कमबख्‍त न था
शराब कर के पिया उसने जहर जीवन भर,
हमारे शहर में उस जैसा कोई मस्‍त न था
गोपाल दास नीरज.........