Monday, September 20, 2010
हंगामा है क्यों बरपा
हजारो साल पूरानी पांडुलिपियों से ले कर अब तक लिखी जाने वाली न जाने कितनी किताबो में ये साफ़ तौर पे लिखा गया कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ ना करे लेकिन हमने सबक नहीं लिया। पूरी दुनिया में कई सालो से प्रकृति के साथ विभात्सा तरीके से खिलवाड़ किया जा रहा है जिसका अंत फ़िलहाल तो नहीं दिख रहा है। अलबत्ता अब कायनात कि तरफ से इंसानों को उनकी करनी का जवाब मिलने लगा है तो हंगामा बरपने लगा, भला ऐसा क्यों। अब गंगा का ही उदाहरण ले लीजिए। वो गंगा ही थी जिसके दोनों किनारों पे मानव सभ्यता ने हजारो सालो तक का सफ़र पूरा किया बल्कि समृद्धि और सुख पूर्वक कई पीढियों ने अपनी जिंदगी गुजारी। सब कुछ ठीक ही चल रहा था कि अक्सर गुमान से लबरेज हो जाने वाले इंसानों कि मौजूदा पीढ़ी ने तरक्की और भविष्य कि योजनाओ कि आड़ लेते हुए टिहरी बांध का निर्माण कर डाला। चंद बरस ही गुजरे कि अब यही बाँध अब उत्तराखंड सी लेकर उत्तर प्रदेश के मैदानी भागो के लिए फजीहत का सबब बन गया। टीवी चैनेल से ले कर अखबारों कि सुर्खियों तक में बाँध में अधिक पानी होने पे उसे छोड़े जाने कि ही कि ही खबरों का दौर चल पड़ा है। तरह तरह से बताया जा रहा है कि यहाँ का इलाका बाढ़ से डूबेगा वहा के गांव डूबने वाले है। इसी टिहरी को लेकर चिंता जताई जाती रही है कि कभी चीन या पाकिस्तान ने इसे निशाना बनाया तो भरी तबाही होगी। बहरहाल जब जो होगा वो तो तब होगा लेकिन पिछले कई सालो से तो पुरे गंगा के रास्ते में पड़ने वाले शहरो कि हालत खराब होती जा रही है। अभी बारिश है तो नदी में अथाह पानी दिख रहा है। वरना तो बाकि के समय में बिच गंगा में जहा तह फूटबाल के मैदानों सरीखे टापू उभरे नजर आते है। कम प्रवाह के चलते गंगा प्रदुसित होने का भी तमगा प् चुकी है जिसकी पवित्रता कि ऐसी ससन हुआ करती थी कि आज भी इंसान गंगा कि कसम बोलचाल में खाता रहता है। आज वही गंगा अपनी बाढ़ में सबको डुबो रही है तो इंसानी जमात कि साडी तरक्की धरी कि धरी दिख रही है। सायद किसी ने ठीक ही कहा है कि हम ही हम है तो क्या हम है, तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो.......
The great use of life is to spend it for something that will ouylast it
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