क्षमाप्रार्थी हूँ मित्रों, काफी समय से अपने लिए ही वक्त नही निकल पा रहा था। अब चेता हूँ तो शायद ढर्रे पे लौट सकूँ। अख़बार की नौकरी के दौरान तो कालम दो कालम लिखना और उसे बेहतर बनने के लीये अनदाज़ और कलेवर तलाश लेना तो जैसे फितरत बन चुकी है लेकिन अपने ही ब्लॉग पे अपने ही मन की थोडी सी बातों को लिख पाना जैसे अपार लगता है। मुझ जैसे मेरे कुछ साथी भी हैं। सबसे निवेदन है की कुछ तो अपनी रचनाधर्मिता दिखाओ भाई। अगर मई भटकू तो मुझे भी टोको।